Song : ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं
Film: इज्ज़त
Actors in the song: तनूजा, धर्मेन्द्र
Singer: लता मंगेशकर और मोहोम्मद रफ़ी
Composer: लक्ष्मीकांत - प्यारेलाल
Lyricist: साहिर लुधियानवी
Year: १९६८
Film: इज्ज़त
Actors in the song: तनूजा, धर्मेन्द्र
Singer: लता मंगेशकर और मोहोम्मद रफ़ी
Composer: लक्ष्मीकांत - प्यारेलाल
Lyricist: साहिर लुधियानवी
Year: १९६८
हर एक गाने को पसंद करने की वजह अलग होती है...कुछ गानों में आपको बस एक दो वजह मिलती है तो कुछ गाने ऐसे भी होते है, जो आपको वजह ढूँढने पे मजबूर कर देते है.
आज का ये गाना बहुत हद तक ऐसा ही है, एक तो रफ़ी-लता का duet, साहिर साब ने लिखा है और एक एक लफ्ज़ ऐसा लगता है के हर मोहोब्बत करने वाले के लिए लिखा गया हो...ये गाना आया तो था ४३ साल पहले, पर ये आज की तारीख़ में भी उतना ही relevant है, सही है...आज की तारीख़ में भी हर एक मोहोब्बत करने वाले की ज़िन्दगी में ये दौर कभी न कभी तो आता ही है के आपको अपने महबूब से पूछना पड़े के, "ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्या करें?"
दिल को छु लेने वाले बोल अच्छे तो होते ही हैं..पर जब लता बाई अपनी आवाज़ में आपसे इल्तेजा करे के "तुम्ही कहदो अब ए जान-ऐ-वफ़ा, हम क्या करें?"..तो उसका जवाब देने के लिए सिर्फ साहिर साब के बोल नहीं..रफ़ी साब की आवाज़ भी चाहिए.."मोहोब्बत ही का ग़म तनहा नहीं हम क्या करें?"
एक अजब कशिश है इस गाने में, एक खिंचाव है, दर्द है...मैं नहीं समझता के दोनों अदाकार वो दर्द को परदे पे दिखाने में १०० % कामियाब हुए है..पर जब गाना इतना सुन्दर हो तब अदाकारी को एक हद तक नज़रअंदाज़ कर सकते हो ( ये मेरी अपनी राइ है, आपका personal opinion अलग हो सकता है)
जज़्बात चाहे जो भी हो..आप उसे कैसे लेते हो वो तो बस आप पे निर्भर करता है..सिर्फ पहली पंक्ति लेलो तो आप उसे ख़ुशी में भी गुनगुना सकते हो और ग़म में भी, पर हाँ जवाब पाने के लिए महबूब का होना बहुत ज़रूरी है....
"किसी के दिल में बस के दिल को तडपना नहीं अच्छा
निगाहों को झलक दे-दे के छिप जाना नहीं अच्छा
उम्मीदों के खिले गुलशन को झुलसना नहीं अच्छा
हमे तुम बिन कोई जंचता नहीं..हम क्या करें?"
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