Film: गेम्ब्लेर
Actors in the song: देव आनंद, ज़ाहीदा
Singer: किशोर कुमार
Composer: सचिनदेव बर्मन
Lyricist: गोपालदास नीरज
Year: १९७३
"गैरों के शेरों को ओ सुनने वाले, हो इस तरफ भी करम"
दिल टूटता है जब, तो दर्द भी निकलता है, और गुस्सा भी आता है उसपे जिसपे जान लुटाते थे.
उसे वो सब कुछ कहने का मन करता है जो आपके दिल में है, और वो जो भूल चूका है. बीती मोहोब्बत उसे याद करवाने का मन भी करता है और ये एहसास दिलवाने का मन भी करता है, के उसने किसको छोड़ दिया है. मेरी मोहोब्बत किसी और से क्यों बेहतर है, और क्यों कोई तुम्हे मुझ जैसे नहीं ही चाह सकता, ये विश्वास तो प्रेमी को होता है, पर वो उसे अपने महबूब को भी बार-बार याद करवाने की कोशिश करता है.
नीरज की लिखी ये कविता इस फिल्म मैं बतौर गाने की शकल में सामने आती है, और दादा बर्मन के संगीत में ढल कर किशोरदा की आवाज़ में देव आनंद की शकल लेके हम से मिलती है. दादा ने कविता को कविता ही रहने दिया है और उसे गाना बनाने की कोशिश बिलकुल नहीं की है, एक भी पंक्ति दूसरी बार नहीं आती है इस में...बस सीधे-सीधे गा के बात सामने रख्खी है और शायद येही इस गाने की खूबसूरती है.
एक गज़ब का दर्द है इस कविता में, और गुस्सा भी है, मगर जिस तरह से इसे पेश किया गिया है, कई जगहों पर इल्तेजा भी लगती है.पर सबसे खूबसूरत हिस्सा है वो जहाँ शायर/आशिक अपने प्यार को जानता है, अभिमान है उसका वो प्यार और कहता है ,
"है प्यार हमने किया जिस तरह से, उसका न कोई जवाब
ज़र्रा थे लेकिन, तेरी लौ में जलकर, हम बन गए आफताब
हमसे है जिंदा वफ़ा और हम ही से, है तेरी महफ़िल जवान
हम जब न होंगे तो रो-रो के दुनिया पूछेगी मेरे निशाँ..."
बहुत ही खूबसूरती से explain किया है...और सच में लाजवाब गाना..अपनी तरह का और bolloywood का एक unique गाना..और आपने गाने कि बारीकियों कि तरफ बड़ी ही खूबसूरती से ध्यान दिलाया है...और ये उन गानों मेंसे है जो अगर सुबह सुबह आपकी जुबां पर चढ जाए तो पर तो पूरा दिन वो आपके मनमें चलता ही रहता है...लाजवाब!!!
ReplyDeleteshukriya parul...bahut, bahut shukriya
ReplyDelete